Monday, 28 September 2015

माता मूर्ति मेला माँ और बेटा का अद्भुत मिलन।

बद्रीनाथ में माता मूर्ति का मेला , बामन द्वादशी पर होता है माँ पुत्र का मिलन भगवान् बद्रीविशाल पैदल तिन किलोमीटर जाते है माँ से मिलने ,

नर हो या नारायण हर एक के लिये माता का स्थान सर्वोपरि होता है यह परम्परा आज से नहीं बल्कि सतुयग से निभाई जा रही है इसी का प्रत्यक्ष उदाहरण है माता मूर्ति मेला,इस मेले के तहत भगवान बद्रीविशाल जी माता मूर्ति से मिलने के लिये माता मूर्ति धाम उनके स्थान पर जाते है क्या है माता मूर्ति को लेकर पूरी परम्परा व मान्यता, आज से मंदिर के मुख्य्पुजारी रावल जी अलकनंदा नदी को पार कर सकते हैं कपाट खुलने से अभी तक रावल जी अलकनंदा नदी को पार नहीं कर सकते थे ,
वीओं1- सतयुग में सहस्त्र कवच का बरदान पाने के बाद जब दुरदंभ नाम के राक्षस ने सृष्टि पर उत्पात मचाना शुरु किया तो उसका बध करने के लिये भगवान विष्णु ने धर्म की पत्नी मूर्ति के गर्भ से नर और नारयण के रूप में जन्म लिया था और बद्रिकाश्रम क्षैत्र मे तप करने के बाद दुरदंभ नाम के राक्षस का बध किया था मान्यता है कि इस स्थान पर एक दिन का तप करने के एक हजार वर्ष के तप के बराबर फल की प्राप्ति होती है।

बामन द्वादशी के पर्व पर बद्रीनाथ धाम में सुबह की पूजा अर्चना के बाद रावल जी की उपस्थिति में उद्दव जी भगवान बद्रीविशाल के प्रतिनिधि के रूप में माता मूर्ति से मिलने बद्रीकाश्रम के बाम भाग मूर्तिधाम पहुचतें है इस दौरान हजारो की संख्या में श्रद्दालु भी इस यात्रा में शामिल होते है और ये भी मान्यता है कि आज के दिन के पश्चात रावल जी पंचशिला से बाहर  धाम में अन्यत्र भी जा सकते है

माता मूर्ति : बद्रीनाथ धाम हिन्दुओ के प्रसिद्ध धाम श्री बद्रीनाथ से तीन किलोमीटर दूर माता मूर्ति का मंदिर है । माता मूर्ति भगवान बद्रीविशाल जी की माता है । जहाँ वर्ष में एक बार बड़ा ही सुन्दर विशाल मेला लगता है । माता मूर्ति महोत्सव एक धार्मिक आयोजन है जिसमें नर-नारायण अपनी माता मूर्ति से मिलने जाते हैं अनादिकाल से चली आ रही इस धार्मिक परंपरा में देश के ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। इस धार्मिक आयोजन के बाद मुख्य पुजारी अलकनंदा नदी पार कर देव दर्शनी तक आ जा सकते हैं। मान्यता है कि जब नर-नारायण ने अपनी माता की श्रद्धा भाव से सेवा की तो इससे खुश होकर माता मूर्ति ने उन्हें वर मांगने को कहा। इसपर नर- नारायण ने माता मूर्ति से घर बार छोड़कर तपस्वी बनने का वरदान मांगा तो मां परेशान हो गई। लेकिन वह अपने को रोक नहीं पाई। इसलिए माता को उन्हें वचन देना ही पड़ा। जब वर्षों तक तपस्या में लीन रहने पर वे वापस नहीं आए तो माता खुद उनकी खोज में बदरीकाश्रम पहुंचीं। उनकी हालात देख वे काफी दुखी हुईं बाद में नर-नारायण के आग्रह पर माता मूर्ति ने भी माणा गांव के ठीक सामने एकांत स्थान में तपस्या शुरू कर दी तब माता ने उन्हें कहा कि तुम वर्ष में एक बार मुझसे मिलने जरूर आओगे। तब से नर- नारायण वर्ष में एक बार माता मूर्ति से मिलने यहां आते हैं ,
इस मेले के अवसर पर हर देश विदेश से आया हुआ श्रद्धालु भगवान् बद्रीविशाल की इस यात्रा में सामिल होता है और बद्रीनाथ जी के साथ हर सर्धालू माता मूर्ति के दर्शन के लिए जाता है

इस अवसर पर सुबह दस बजे से तिन बजे तक बद्रीनाथ जी का मंदिर बंद रहता है और आज के दिन भगवान् बद्रीनाथ जी माँ की गोद में ही भोग खाते हैं और वही भगवान का अभिषेक भी माता की गोद में ही होता है ,

जोशीमठ में फुलकोठ मेला शिव पार्वती का अद्धभुत मिलन।

अद्भुत आस्था परम्परा सभ्यता और संस्कृति का चतुष्कोणीय भव्य दर्शन । जोशीमठ में फुलकोठ , ब्रहम कमल के रूप में आते हैं शिव, पार्वती के रूप में माँ चंडिका अदभुत मिलन जोशीमठ के नरसिंह मंदिर और रविग्राम के चंडिका देवी मंदिर में यहाँ अर्धनारीश्वर अवतार ब्रहम कमल के रूप में मिलेंगे भगवान् शिव और माँ पार्वती यहाँ जो बुग्यालों से ब्रह्म कमल आते है उन्ही से यहाँ अर्धनारीश्वर अवतार बनाया जाता है, मंदिर में एक जगह जिसे कोठ कहा जाता है जिसमे बुग्याल से आये ब्रह्म कमल लगाये जाते हैं और प्राण प्रतिस्था कर उस कोठ और ब्रह्म कमल में अर्धनारीश्वर अवतार के रूप में ब्रहम कमल लगाये जाते हैं , यहाँ की परंपरा है जेसे ही प्राण प्रतिस्था कर भगवन को विराजमान किया जाता है वेसे ही गाव के 200 परिवारों के सभी लोग यहाँ मंदिर में दो दिनों तक घी के दिए जलाये रखते हैं इन दो दिन कोई भी गाव वाला सोता तक नहीं है मंदिर में ही चांचडी भजन कीर्तन करने में लगे होते हैं इस फुलकोठ से ही श्राद्ध पक्ष भी सुरु हो जाते हैं, इस फुल कोठ में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी रहती है ,जोशीमठ के नरसिंह मंदिर और रविग्राम में मनाया जाता है फुलकोठ इसे फुल कोठ इस लिए काहा जाता है क्योंकि इस फुल कोठ से पहले दिन दोनों गाव से दो दो लोग पैदल नंगे पैर 3500 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर जाते हैं और अगले दिन सुबह उठते ही नहाने के बाद ब्रह्म कमल बुग्यालों से निकाल के अपनी कनडियों में भरते हैं तत्पस्च्यात कनडीयां भर जाने के बाद ये लोग वापस अपने अपने गावं के लिए निकलते हैं जिस दिन ये लोग वापसी करते हैं उस दिन ये लोग सारे रास्ते भर कुछ भी नहीं खाते शाम को 9 बजे के आस पास ये लोग जोशीमठ अपने गाव पहुचते हैं, और जो ब्रह्म कमल का फुल ये लोग ले के आते हैं उन्हें मंदिर के कोठ में लगाया जाता है इसीलिए इसे फुल कोठ कहा जाता है

Friday, 3 July 2015

सरस्वती नदी विलुप्त हो जाती है अलकापुरी माणा में ,

             सरस्वती नदी विलुप्त हो जाती है अलकापुरी माणा में ,

सरस्वती नदी तिब्बत के सरस्वती सरोवर से निकलती है बद्रीनाथ से आगे माणा गावँ के भीम पुल के पास दिखाई देती है और यहाँ से कुछ ही दुरी पर निकलकर माणा गावँ में ही अलकापुरी में मिलती और यहाँ से विलुप्त हो जाती है जिसके बाद कहा जाता है की पर्यागराज इलाहबाद में निकलती है और सरस्वती का विलुप्त होने का कारन बेदव्यास जी महाभारत की रचना कर रहे थे व्यास गुफा जो की माणा गावँ के ऊपर है पर सरस्वती नदी का सोर बहुत ज्यादा था जिस कारन सरस्वती नदी को बेदव्यास जी ने श्राप दिया था तब से सरस्वती नदी विलुप्त हुई है ।

कमल नयन सिलोडि 

Saturday, 20 June 2015

बद्रीनाथ यात्रा एक अद्भुत एहसास

 बद्रीनाथ की यात्रा एक अद्भुत एहसास कराती है ,

बद्रीनाथ यात्रा  जोशीमठ के बाद सुगम होती है पर बहुत ही आनंदित यात्रा, मन को शांति सुकून मिलता है , गोबिन्द्घाट पांडूकेस्वर तक यात्रा बाजारों की रोनक बहुत ही उत्साह देती है,  जेसे हनुमान चट्टी से आगे बढ़ो तो आगे यात्रा में लगता है की मार्ग थोडा कठिन जरुर है पर बनाने वाले ने की खूबसूरती से इन जगहों के पहाड़ों को सजाया है, कल कल बहते झरने कल कल नदी की आवाजे ऐसी घुन्ज्ती हैं जेसे मनो यहाँ कोइ वासिन्दा तक नहीं रहता यहाँ की आबो हवा से आने के बाद अचानक इन रास्तों से गुजतरे हुए प्रकीर्ति का आवास होता है तब ये एहसास होता की वाकई में जिसे स्वर्ग कहते हैं देखा तो हमने भी नहीं है पर सिर्फ सुना हुआ है यहाँ आने से लगता है की वाकई में कही स्वर्ग है और यही है ,
 पहली बार आये हुए लोग जगह जगह बर्फ की बड़ी बड़ी चट्टानें देख किनारे गाड़ियों को रोके हुए और उस बर्फ की चट्टान के पास जाकर फोटो खिंच रहे हैं तो कोई बर्फ को हाथ से छु रहा है और किसी किसी को हाथ एक दम से अन्दर डालते हुए देखा तो पता लगा की उन्हें बर्फ पकडे हुए काफी टाइम हो गया और अब हाथ ठन्डे हो गए धीरे धीरे बद्रीनाथ की ओर बढे तो देखा की मार्ग पूरा पहाड़ी पर है पूरी सड़क चट्टान काट कर बनी हुई है आगे और चढ़ाई पर हमको जाना है जेसे जेसे हम लोग चढ़ाई पार किये तो एक स्थान आता है देवदर्शनी जहाँ से बद्रीनाथ सुरु हो जाता है और मंदिर बिलकुल ही साफ दिखाई देता है हालाँकि जरा दुरी होने के कारन इतना भी नहीं पर भक्तों को तो मंदिर के ही दर्शन बहुत हैं वहां से पूरी बद्रीपूरी दिखाई देती है गाड़ी से उस स्थान पर उतरो और हर तरफ नजर घुमाओ तो एक अलग सा एहसास होता है ठंडी ठंडी हवाएं चलती रहती हैं बद्रीनाथ में हवाएं बहुत ज्यादा चलती है फिर वहां से आगे आयें बद्रीनाथ के बाज़ार सजा हुआ रहता है धीरे धीरे निचे मंदिर की तरफ बढे बहुत ही सुन्दर सजा हुआ बाजार मिलता है आगे पुल पार कर निचे तप्त कुंड की तरफ बढे थोड़ी ठण्ड थी वो भी हमारी तप्तकुंड में नहाने से दूर हो गयी एकदम गर्म पानी बहुत ही जरुरी और उस स्थान पर फिर मंदिर दर्शन के लिए आदिकेदार के दर्शन किये फिर वहां से आगे बढ़ हम लोग मंदिर के अच्छे से दर्शन करने के बाद परिक्रमा कर बाहर निकलते हैं 

 बद्रीनाथ मंदिर के बहार जो प्रान्गड़ है हर कोई यहाँ पर आ कर फिर से बद्रीनाथ के मंदिर को निहारता है तो कोई अपनी फोटो यहाँ पर खींचता रहता है हर कोई यहाँ की यादों को संजोना चाहता है पर मंदिर प्रान्गड़ में भीड़ देख हम भी बढे आगे प्रान्गड़ की ओर तो देखा की वहां पर भजन कीर्तन हो रहा है जिसमे सभी यात्री यहाँ बेठे हुए कुछ नाच भी रहे हैं इन्हें देख हर कोई नाचने लग जायेगा हमारा भी बहुत मन किया इस भजन कीर्तन में मंदिर के भी सभी अधिकारी और सभी लोग भी मौजूद होते है और यात्रियों के नाचते गाते जय जय नारायण गाते रहते हैं रोजाना यहाँ ऐसा होता है बस रोज यात्री बदल जाते हैं जो लोग रोज बद्रीनाथ में रहते हैं उनका जीवन बहुत ही शांति पूर्ण रहता है यही धाम है जहाँ से स्वर्ग को जाते हैं यही से पितरों को मोक्ष मिलता है नारायण के धाम बद्रीनाथ से कमल नयन सिलोड़ी

Thursday, 18 June 2015

नंदा देवी एक्सपीडिशन

यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित  नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क में अगले चौबीस  दिनों तक वैज्ञानिको व अधिकारियों द्वारा विभिन्न पादपो व जानवरों की स्थिति के बारे में जानकारियां जुटाई जाएँगी. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत  सरकार व वन विकास निगम उत्तराखंड के संयुक्त तत्वाधान में शुरू हुए नन्दा देवी डिकेडल एक्सपीडिशन 2015 के दल कों उत्तराखंड के वन मंत्री दिनेश अग्रवाल ने हरी झंडी दिखा कर जोशीमठ से रवाना किया.दल का मकसद अगले चौबीस दिनों तक नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क में जैव विविधताओं का अध्ययन कर पार्क की वर्तमान स्थिति को जानना है.
ज्ञात हो कि नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क में 1982 में चार हजार से भी अधिक पर्यटक व ट्रेकर्स पहुंचे थे, बढती पर्यटन गतिविधियों व मानव दखल के कारण नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क में प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा था जिस कारण सरकार द्वारा 1983 में पार्क में सभी गतिविधियाँ बंद करवा दी गई थी. इसके बाद 1993 से हर दस साल में नन्दा देवी डिकेडल एक्सपीडिशन शुरू किया गया जिसके द्वारा नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क की स्थिति में हुए सुधारो का अध्ययन किया जाने लगा.मानव गतिविधियाँ कम होने से नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क की स्थिति में अनुकूल प्रभाव पड़ा व पार्क में न सिर्फ जैव विविधता बल्कि जंतुओं की स्थिति भी ठीक हुई.वर्ष 2013 में होने वाले नन्दा देवी डिकेडल एक्सपीडिशन को आपदा के कारण स्थगित करना पड़ा व इस वर्ष यह एक्सपीडिशन आयोजित किया गया है.
इस वर्ष नन्दा देवी डिकेडल एक्सपीडिशन के लिए गए दल में विभिन्न संस्थानों के 38 वैज्ञानिक व अधिकारी शामिल हैं. उत्तराखंड के वन मंत्री दिनेश अग्रवाल का कहना  है कि इस साल के एक्सपीडिशन से नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क में कई सुधार  दिखने की प्रबल संभावनाएं है और अगर सुधार अपेक्षित रहे तो यह क्षेत्र में पर्यटन की संभावनाओं को एक नयी गति देगा.
कमल नयन ।

नीता अम्बानी भगवान् बद्रीविशाल की मुरीद ।

            अब नीता अम्बानी भी हुई बद्रीविशाल की मुरीद

नीता अम्बानी भी हुई भगवान् बद्रीविशाल की मुरीद 2016 में बद्रीनाथ और केदारनाथ में भगवान् के लिए भोग  केसर और चन्दन जितना भी दोनों धामों में लगता है सब नीता अम्बानी जी की तरफ से अभी आई पि के के फ़ाइनल से पहले नीता अम्बानी भगवान् बद्रीविशाल के दर पहुची थी और उन्होंने यहाँ आई पि एल फ़ाइनल के लिए भगवान् से दुआ मांगी थी नीता अम्बानी ने कहा था की अगर फ़ाइनल उनकी टीम का आया तो वो भगवान् बद्रीनाथ मंदिर समिति को दो बोलेरो गाड़ी देंगी और भगवान् बद्री विशाल ने उनकी तुरंत सुल ली और आई पि एल ट्रोफी उनकी गोद में डाल दी तो नीता अम्बानी जी ने भी देर नहीं की और बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को तुरंत एक सप्ताह के अन्दर ही दो बोलेरो गाड़ी मुंबई से बद्रीनाथ  भिजवाई और साथ में यह भी कहा गया है मंदिर समित को की बहुत जल्द नीता अम्बानी सचिन सही पूरी मुंबई इंडियन की टीम सहित बद्रीनाथ ट्रोफी लेकर पहुचेंगी जिसका की अब मंदिर समिति और बद्रीनाथ के लोग भी बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं उन्होंने 2016 में बद्रीनाथ और  केदारनाथ मंदिर में लगने वाला भोग, चन्दन, केसर और इन मंदिरों में होने वाली पूजा पूरी नीता अम्बानी जी की तरफ से रहेगी इस सब में 1 करोड़ रूपये का खर्चा बद्रीनाथ और केदारनाथ में होता है जिसका खर्च आने वाले 2016 में नीता अम्बानी जी देंगी ऐसा बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के सी इ ओ बी डी सिंह जी ने बताया और कभी भी नीता अम्बानी, सचिन तेंदुलकर, मुंबई इंडियन ट्रोफी के साथ बद्रीनाथ पहुच सकते हैं हालाँकि अनिल अम्बानी यहाँ साल में दो से चार बार बद्रीनाथ के दर्शन करने हर साल आते है तो नीता अम्बानी अभी दूसरी बार बद्रीनाथ आई थी इससे पहले दो साल पहले अपनी सास कोकिला बेन के साथ भी बद्रीनाथ आई थी और अब इनका भी भगवान् बद्रीविशाल और विस्वास बढ़ गया है और अब जल्द ही वो बद्रीनाथ आएँगी
नीता अम्बानी भी हुई भगवान् बद्रीविशाल की मुरीद 2016 में बद्रीनाथ और केदारनाथ में भगवान् के लिए भोग  केसर और चन्दन जितना भी दोनों धामों में लगता है सब नीता अम्बानी जी की तरफ से अभी आई पि के के फ़ाइनल से पहले नीता अम्बानी भगवान् बद्रीविशाल के दर पहुची थी और उन्होंने यहाँ आई पि एल फ़ाइनल के लिए भगवान् से दुआ मांगी थी नीता अम्बानी ने कहा था की अगर फ़ाइनल उनकी टीम का आया तो वो भगवान् बद्रीनाथ मंदिर समिति को दो बोलेरो गाड़ी देंगी और भगवान् बद्री विशाल ने उनकी तुरंत सुल ली और आई पि एल ट्रोफी उनकी गोद में डाल दी तो नीता अम्बानी जी ने भी देर नहीं की और बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को तुरंत एक सप्ताह के अन्दर ही दो बोलेरो गाड़ी मुंबई से बद्रीनाथ बिझ्वाई और साथ में यह भी कहा गया है मंदिर समित को की बहुत जल्द नीता अम्बानी सचिन सही पूरी मुंबई इंडियन की टीम सहित बद्रीनाथ ट्रोफी लेकर पहुचेंगी जिसका की अब मंदिर समिति और बद्रीनाथ के लोग भी बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं उन्होंने 2016 में बद्रीनाथ और  केदारनाथ मंदिर में लगने वाला भोग, चन्दन, केसर और इन मंदिरों में होने वाली पूजा पूरी नीता अम्बानी जी की तरफ से रहेगी इस सब में 1 करोड़ रूपये का खर्चा बद्रीनाथ और केदारनाथ में होता है जिसका खर्च आने वाले 2016 में नीता अम्बानी जी देंगी ऐसा बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के सी इ ओ बी डी सिंह जी ने बताया और कभी भी नीता अम्बानी, सचिन तेंदुलकर, मुंबई इंडियन ट्रोफी के साथ बद्रीनाथ पहुच सकते हैं हालाँकि अनिल अम्बानी यहाँ साल में दो से चार बार बद्रीनाथ के दर्शन करने हर साल आते है तो नीता अम्बानी अभी दूसरी बार बद्रीनाथ आई थी इससे पहले दो साल पहले अपनी सास कोकिला बेन के साथ भी बद्रीनाथ आई थी और अब इनका भी भगवान् बद्रीविशाल और विस्वास बढ़ गया है और अब जल्द ही वो बद्रीनाथ आएँगी
कामल नयन

भारत के अंतिम गावं माणा में घंटाकर्ण मंदिर - बद्रीनाथ चमोली उत्तराखंड

भगवान् घंटाकर्ण बद्रीनाथ, माणा , पांडुकेस्वर , तक के क्षेत्रपाल हैं भगवान् घंटाकर्ण के कापट खुल गए हैं और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है

 

कौन हैं घंटा कर्ण इनका नाम क्यों घंटा कर्ण कहा जाता है ?

घंटा कर्ण यक्ष थे और भगवान् शिव के परमभक्त थे और इनके कानो में हमेशा घंटी बंधी हुई रहती थी और घंटा कर्ण जी भगवान् विष्णु का नाम न सुने इस लिए उन्होंने अपने कानो में हमेशा घंटी बाँधी हुई रहती थी और भगवान् विष्णु से नफरत करते थे इस लिए जब भी जहाँ भी भगवान् विष्णु का नाम सुनते तो अपने कानो की घंटी बजा देते थे ताकि उन्हें भगवान् नारायण का नाम न सुनाई दे इसीलिए इन्हें घंटाकर्ण कहा जाता है ,

केसे बने घंटा कर्ण नारायण भक्त ?

एक बार घंटा कर्ण द्वारा भगवान् शिव से अपने मोक्ष का मार्ग पूछने पर शिव भगवान् बताते हैं की मोक्ष के भगवान् भगवान् विष्णु (नारायण ) हैं तो घंटा कर्ण द्वारा अपने विश्नुद्रोही होने का वर्तन्त शिव को बताते हैं शिव द्वारा बताया जाता है की भगवान् नारायण परम दयालु व् अपने भक्त प्रिय हैं जो व् सरणागत होता है उनका भगवान् उध्दार करते हैं इसे सुन घंटा कर्ण पुरे भारत में द्वारका रामेस्वर्म गया कशी विस्वनाथ सहित अन्य सभी तीर्थों में भगवान् नारायण को ढूंडते हैं अंत में वे हिमालय बद्र्कास्र्म की तरफ पहुचते हैं कहा जाता है की जब वो बद्रीनाथ के पास देव्दार्शनी में पहुचते हैं तो भगवान् बद्रीनाथ उनके स्वागत के लिए एक ब्रह्मण को उन्हें लेने भेजते हैं पर घंटाकर्ण पहले भगवान् विश्नुद्रोही थे तो उन्होंने सोचा की ये ब्रह्मण उसे बद्रीनाथ नहीं जाने देगा तो उन्होंने उस ब्रह्मण का सर काट भगवान् विष्णु को खुस करने के लिए ले गया पर भगवान् विष्णु ने प्रकट होकर उन्हें बताते हैं की क्रोध में आकर उन्होंने ब्रह्म हत्या कर डी है तब घंटा कर्ण भगवान् बद्रीनाथ से कहते हैं की वो इसके पच्य्ताप के लिए अपनी गर्दन को काटने की कोशिस करते हैं इस पर भगवान् बद्रीनाथ उन्हें रोक देते हैं और कहते हैं की तुम यहाँ बद्रीनाथ में तपस्या करो और तब से भगवान् के मंदिर के बायीं और बद्रीनाथ मंदिर के प्रान्गड़ में घंटा कर्ण तपस्या कर रहे हैं ,

केसे बने घंटा कर्ण क्षेत्र के क्षेत्र पाल ?

जब घंटा कर्ण भगवान् नारायण की सरणागत होने के साथ साथ तपस्या कर पश्च्य्ताप करने लगे तो भगवान् नारायण ने खुस होकर उन्हें इस पुरे बद्रिकस्र्म क्षेत्र की रक्षा के लिए यहां के क्षेत्र पाल बनाया तब से लेकर आजतक माणा पन्दुकेस्वर और बद्रीनाथ में क्षेत्र पाल के रूप में इनकी पूजा होती है और जब भी भगवान् बद्रीनाथ की पूजा होती है तो घंटा कर्ण की भी पूजा होती है और तब से आज तक इनका मंदिर माणा गाव में स्थित है जहाँ के कपट जून माह के मध्य में खुलते हैं और इस अवसर पर यहाँ हजारों श्रद्धालु पहुचते हैं ये गाव भोटिया जनजाति के लोगों का गाव हैं और इस गाव के लोग अपने संस्कृति के साथ इनकी पूजा अर्चना करते हैं इस अवसर पर पूरा गाव अपनी भेष भूषा में यहाँ मौजूद रहते हैं ,

क्या मानते हैं लोग ?

आज भी क्षेत्र के लोग बताते हैं की घंटा कर्ण की आवाजाही होती है उनका कहना है की कभी सफ़ेद घोड़ों में बैठकर कभी मुकुट पहनकर लोगों को उनके दर्शन हुए हैं और माणा गाव में कभी इनकी आवाजे भी सुनाई देती हैं ,
कमल नयन सिलोड़ि