बद्रीनाथ में माता मूर्ति का मेला , बामन द्वादशी पर होता है माँ पुत्र का मिलन भगवान् बद्रीविशाल पैदल तिन किलोमीटर जाते है माँ से मिलने ,
नर हो या नारायण हर एक के लिये माता का स्थान सर्वोपरि होता है यह परम्परा आज से नहीं बल्कि सतुयग से निभाई जा रही है इसी का प्रत्यक्ष उदाहरण है माता मूर्ति मेला,इस मेले के तहत भगवान बद्रीविशाल जी माता मूर्ति से मिलने के लिये माता मूर्ति धाम उनके स्थान पर जाते है क्या है माता मूर्ति को लेकर पूरी परम्परा व मान्यता, आज से मंदिर के मुख्य्पुजारी रावल जी अलकनंदा नदी को पार कर सकते हैं कपाट खुलने से अभी तक रावल जी अलकनंदा नदी को पार नहीं कर सकते थे ,
वीओं1- सतयुग में सहस्त्र कवच का बरदान पाने के बाद जब दुरदंभ नाम के राक्षस ने सृष्टि पर उत्पात मचाना शुरु किया तो उसका बध करने के लिये भगवान विष्णु ने धर्म की पत्नी मूर्ति के गर्भ से नर और नारयण के रूप में जन्म लिया था और बद्रिकाश्रम क्षैत्र मे तप करने के बाद दुरदंभ नाम के राक्षस का बध किया था मान्यता है कि इस स्थान पर एक दिन का तप करने के एक हजार वर्ष के तप के बराबर फल की प्राप्ति होती है।
बामन द्वादशी के पर्व पर बद्रीनाथ धाम में सुबह की पूजा अर्चना के बाद रावल जी की उपस्थिति में उद्दव जी भगवान बद्रीविशाल के प्रतिनिधि के रूप में माता मूर्ति से मिलने बद्रीकाश्रम के बाम भाग मूर्तिधाम पहुचतें है इस दौरान हजारो की संख्या में श्रद्दालु भी इस यात्रा में शामिल होते है और ये भी मान्यता है कि आज के दिन के पश्चात रावल जी पंचशिला से बाहर धाम में अन्यत्र भी जा सकते है
माता मूर्ति : बद्रीनाथ धाम हिन्दुओ के प्रसिद्ध धाम श्री बद्रीनाथ से तीन किलोमीटर दूर माता मूर्ति का मंदिर है । माता मूर्ति भगवान बद्रीविशाल जी की माता है । जहाँ वर्ष में एक बार बड़ा ही सुन्दर विशाल मेला लगता है । माता मूर्ति महोत्सव एक धार्मिक आयोजन है जिसमें नर-नारायण अपनी माता मूर्ति से मिलने जाते हैं अनादिकाल से चली आ रही इस धार्मिक परंपरा में देश के ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। इस धार्मिक आयोजन के बाद मुख्य पुजारी अलकनंदा नदी पार कर देव दर्शनी तक आ जा सकते हैं। मान्यता है कि जब नर-नारायण ने अपनी माता की श्रद्धा भाव से सेवा की तो इससे खुश होकर माता मूर्ति ने उन्हें वर मांगने को कहा। इसपर नर- नारायण ने माता मूर्ति से घर बार छोड़कर तपस्वी बनने का वरदान मांगा तो मां परेशान हो गई। लेकिन वह अपने को रोक नहीं पाई। इसलिए माता को उन्हें वचन देना ही पड़ा। जब वर्षों तक तपस्या में लीन रहने पर वे वापस नहीं आए तो माता खुद उनकी खोज में बदरीकाश्रम पहुंचीं। उनकी हालात देख वे काफी दुखी हुईं बाद में नर-नारायण के आग्रह पर माता मूर्ति ने भी माणा गांव के ठीक सामने एकांत स्थान में तपस्या शुरू कर दी तब माता ने उन्हें कहा कि तुम वर्ष में एक बार मुझसे मिलने जरूर आओगे। तब से नर- नारायण वर्ष में एक बार माता मूर्ति से मिलने यहां आते हैं ,
इस मेले के अवसर पर हर देश विदेश से आया हुआ श्रद्धालु भगवान् बद्रीविशाल की इस यात्रा में सामिल होता है और बद्रीनाथ जी के साथ हर सर्धालू माता मूर्ति के दर्शन के लिए जाता है
इस अवसर पर सुबह दस बजे से तिन बजे तक बद्रीनाथ जी का मंदिर बंद रहता है और आज के दिन भगवान् बद्रीनाथ जी माँ की गोद में ही भोग खाते हैं और वही भगवान का अभिषेक भी माता की गोद में ही होता है ,
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